महादेव, शिव, महेश्वर, भगवान शंकर का यथार्थ स्वरूप
शिव, महादेव, महेश्वर, शंकर इत्यादि पर्यायवाची शब्दों का उपयोग व्यवहार में होते हम नित्य ही देखते हैं। परन्तु इन शब्दों का सत्यार्थ क्या है ? इस विषय में हमारी कल्पनायें प्रायः भ्रामक ही रहती हैं। शिव हम ज्योतिर्लिंग के पिण्ड को मानते हैं तो कुछ लोग इसे निर्गुण-निराकार का प्रतीक भी मानते हैं। अन्य अनेक अर्थ भी इन शब्दों के साथ जुड़े हुये हैं।
वेद, उपनिषद, गीता, भागवत, रामायण तथा अन्य मान्यता प्राप्त संतों के प्रमाणों द्वारा शिव, महादेव, महेश्वर, शंकर इत्यादि शब्दों का यथार्थ जानने की एवं भ्रमग्रसित मानिंदियों एवं भ्रमग्रस्त कल्पनाओं से छूटने की इस मानव जगत को अत्यान्त आवश्यकता है।
गुरू ब्रह्मा, गुरू विष्णु, गुरू देवो महेश्वरः।
गुरू साक्षात् परब्रह्म, तस्मै श्री गुरूवे नमः।।
वर्तमान समय में हमारे मानव जगत में देवी-देवताओं के अनेक नाम प्रचलित हैं। उन देवी-देवताओं में प्रायः मानव जगत में अपना एक विशेष स्थान रखने वाला नाम भगवान शंकर है। भगवान शंकर शिव, महादेव, महेश्वर आदि अनेक नामों से जाने जाते हैं।
परन्तु वैदिक इतिहास के अनुसार सबसे अधिक प्रमाणनीय वेद एवं वेदों के अध्याय उपनिषद ही हैं। उपनिषदों में शिव, महादेव, महेश्वर का जो स्वरूप लिखा गया है, जिसमें कि भगवतगीता उपनिषद का भी समावेश है।
भगवतगीता के श्लोकानुसारः-
प्रपंचोपसमम् साक्षात शिवम अद्वैत ओंकाराः।
अकारः उकारः मकारः स आत्मा स विज्ञेयः।।
इस मंत्र के यथार्थानुसारः- जिसको जानकर जीवात्मा के परमात्मा या शिव, महादेव, महेश्वर संबंधी सब प्रकार के संशय भ्रम शमन हो जाते हैं वह एकमात्र ऊँकार स्वरूप शिव है जो अकार, उकार, मकार इन तीन अक्षरों के जोड़ से बना है।
अकार, उकार, मकार अर्थात ऊँ यह नाम परमात्मा या ब्रह्म का ही है।
वेद मंत्रों मे कहा गया हैः-
ऊँ इति इदम् ब्रह्म, ऊँ इति इदम् सर्वम।
विचिन्तायेत ओंकार मात्र सचराचरम जगत।।
भगवान श्रीकृष्ण ने भी भगवतगीता के क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ नामक त्रयोदश अध्याय में इन शब्दों का समन्वय किया है एवं इन शब्दों के यथार्थ स्वरूप का निरूपण किया है।
उपद्रष्टानुमंता च भर्ता भोक्ता महेश्वरः ।
परमात्मेति चाप्युक्तो देहेSस्मिन्पुरूषः परः।।
उपदृष्टा- जो सदैव ही समीप रहकर सब कुछ देखता है।
अनुमन्ता- जो शुद्ध ह्रदय वाले जीवों को, मनुष्यों को सतमार्ग बतलाता है।
भर्ता भोक्ताः-जो सबका भरण-पोषण करने वाला है, जो सबको अपने मे विलय करने वाला है।
परमात्मा इति उक्त देहे अस्मिन पुरूषः परः – परमात्मा होने से सब देहों (समस्त चर-अचर की देहों) में पुरूष (अक्षर) रूप से स्थित वह परमात्मा ही महेश्वर है।
शिव, महादेव, महेश्वर, शंकर के विषय में महामुनि वेदव्यास ने एक स्वतंत्र पुराण लिखा है जिसे शिव पुराण के नाम से जाना जाता है।
सर्वप्रथम पुराण किसे कहते हैं? यह महामुनि वेदव्यास के सिद्धान्तानुसार एवं निर्णयानुसार यदि विचार करें तो,
सर्गस्य प्रतिसर्गस्य वंशामनुवंतराणि च ।
वंशानुचरितम चैव पुराणम पंच लक्षणम ।।
जिसमें सृष्टि की उत्पत्ति (सर्ग) कब हुयी कहाँ से हुयी और कैसे हुयी? सृष्टि का विलय(प्रतिसर्ग) कब होगा, कहाँ होगा और कैसे होगा? इन विचारों का जहाँ तक तत्वदर्शी ऋषि खोज पाये हैं, खोजकर लिखा गया है।
वंश, कौन सा वंश किस मन्वतर में हुआ और उसके वंश की परम्परा कब तक चली यह पांच बातें जिस ग्रंथ में लिखी होती हैं उसे पुराण कहते हैं।
पुराण प्राचीनतम से लेकर समकाल तक का इतिहास ही कहलाता है।
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